तारे आँखें झपकावें है जर्रा जर्रा सोये हैं तुम भी सुनो हो यारो। शव में सन्नाटे कुछ वोले हैं।

 तारे आँखें झपकावें है जर्रा जर्रा सोये हैं तुम भी सुनो हो यारो। शव में सन्नाटे कुछ वोले हैं।


प्रसंग प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह, भाग-2' में उद्धृत गजल से संकलित है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने रात के तारों का सौंदर्य वर्णन किया है।


व्याख्या शायर कहता है कि रात ढल रही है। अब तारे भी आँखें झपका रहे हैं। इस समय सृष्टि का कण-कण सो रहा है, शांत है। वह कहता है कि हे मित्रो! रात में पसरा यह सन्नाटा भी कुछ कह रहा है। यह भी अपनी वेदना व्यक्त कर रहा है।