आँगन में ठुनक रहा जिदयाय है बालक तो हई चाँद में ललचाया है दर्पन उसे दे के कह रही माँ देख आयने में चाँद उतर आया है प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह, भाग-2' में रुवाइयाँ' से है। इसके रचयिता फारसी के प्रमुख शायर फिराक गोरखपुरी है। इसमें इस रुवई में वाल हठ का वर्णन किया गया हैं।
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आँगन में ठुनक रहा जिदयाय है बालक तो हई चाँद में ललचाया है दर्पन उसे दे के कह रही माँ देख आयने में चाँद उतर आया है प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह, भाग-2' में रुवाइयाँ' से है। इसके रचयिता फारसी के प्रमुख शायर फिराक गोरखपुरी है। इसमें इस रुवई में वाल हठ का वर्णन किया गया हैं।
व्याख्या- शायर कहता है कि छोटा बच्चा आँगन में मचल रहा है। वह जिद लए हुए हैक उसे आकाश का चाँद चाहिए। उसका मन उस चाँद पर ललचा गया है। माँ उसे दर्पण में चाँद हुए कहती है कि देख बेटा, दर्पण में चाँद उतर आया है। इस तरह वह बच्चे की जिद पूरी करती है।
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