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21. मेरी प्रिय पुस्तक - कुरुक्षेत्र
विचार-बिंदु • मेरी प्रिय पुस्तक कुरुक्षेत्र युद्ध का दोषी कौन• न्याय और शांति का संबंध संघर्ष की प्रेरणा
• ओजस्वी भाषा। मेरी प्रिय पुस्तक - कुरुक्षेत्र - मेरी सबसे प्रिय पुस्तक है-रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'कुरुक्षेत्र'। यह युद्ध और शांति की समस्या पर आधारित है। इसमें महाभारत के उस प्रसंग का वर्णन है जब युद्ध के समाप्त होने पर भीष्म शरशय्या पर लेटे हुए हैं। उपर पांडव अपनी जीत पर प्रसन्न हैं परंतु धर्मराज युधिष्ठिर इतने लोगों की मृत्यु और बर्बादी पर बहुत दुखी हैं। वे पश्चात्ताप
करते हुए भीष्म के पास जाते हैं। वे रोते हुए कहते हैं कि उन्होंने युद्ध करके घोर पाप किया है। राज्य पाने के लिए की गई हिंसा
भी पाप है, अन्याय है। इससे अच्छा तो यही होता कि वे भीख माँगकर जी लेते।
युद्ध का दोषी कौन-भीष्म युधिष्ठिर को कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में युधिष्ठिर का कोई दोष नहीं है। दोष तो पापी दुर्योधन का है, शकुनि का है, चारों ओर फैली द्वेष भावना का है, अन्याय का है, जिसके कारण युद्ध हुआ
पापी कौन ? मनुज से उसका न्याय चुराने वाला।
या कि न्याय खोजते, विघ्न का शीश उड़ाने वाला।।
दिनकर जी स्पष्ट कहते हैं कि अन्याय का विरोध करने वाला पापी नहीं है, बल्कि अन्याय करने वाला पापी है। न्याय और शांति का संबंध इस काव्य में दिनकर ने यह भी प्रश्न उठाया है कि किसी राज्य में शांति कैसे संभव है ? ये कहते हैं
शांति नहीं तब तक, जब तक
सुख-भाग न सबका सम हो।
नहीं किसी को बहुत अधिक हो नहीं किसी को कम हो ।
संघर्ष की प्रेरणा-इस संदेश के बाद भीष्म युधिष्ठिर को थपथपी देते हुए कहते हैं कि उसने अन्याय का विरोध करके अच्छा से किया भीष्म कहते हैं, अन्याय का विरोध करना तो पुण्य है, पाप नहीं।
छीनता हो स्वत्व कोई, और तू
त्याग-रूप से काम ले, यह पाप है। पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे बढ़ रहा तेरी तरफ़ जो हाथ है
निबंध लेखन
है। इस ओजस्वी भाषा-दिनकर का यह ग्रंथ प्रेरणा, ओज, धीरता, साहस और हिम्मत का भंडार है। इसकी भाषा आग उगलती → मिलते-जुलते निबंध
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