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हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रे ले है।
प्रसंग प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह, भाग-2 में संकलित गज़ल से लिया गया है। इसके रचयिता फ़िराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने मनुष्य के दोषारोपण करने की प्रवृत्ति के विषय में बताया है।
व्याख्या- शायर कहता है कि संसार में मेरी किस्मत और मैं खुद दोनों ही एक जैसे हैं। हम दोनों एक ही काम करते हैं। अभाव के लिए मैं अपनी किस्मत को दोषी मानता हूँ तथा इसलिए किस्मत पर रोता हूँ। किस्मत मेरी दशा को देखकर रोती है। वह शायद मेरी हीन कर्मनिष्ठा को देखकर झल्ताती है।
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