नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं या उड़ जने को रंगो-वू गुलशन में पर तोले हैं।

नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं या उड़ जने को रंगो-वू गुलशन में पर तोले हैं।


प्रसंग- प्रस्तुत शेर हमारी पाठपुस्तक आरोह, भाग-2' में संकलित गजल से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में वसंत ऋतु का वर्णन किया गया है।


व्याख्या- कवि कहता है कि वसंत ऋतु में नए रस से भरी कलियों की कोमल पंखुड़ियों की गाठे खुल रही हैं। वे धीरे-धीरे फूल बनने की ओर अग्रसर है। ऐसा लगता है मानो रंग और आधी आकाश में उड़ जाने के लिए पंख फडफड़ा रहे हों। दूसरे शब्दों में, बाग में कलियाँ खिलते ही सुगंध फैल जाती है।