लाहोर अभी तक उनका वतन हे' ओर देहली मेटा या मेरा वतन ढाका है, जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ की ओर संकेत करते हैं ?
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प्रश्न. 12 · लाहोर अभी तक उनका वतन हे' ओर देहली मेटा या मेरा वतन ढाका है, जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ की ओर संकेत करते हैं ?
उत्तर भारत में जन्मे लोग आज पुनर्वास के कारण अपने आप को पाकिस्तानी या वांग्लादेशी मानने के लिए वाध्य हैं। दिल्ली में जन्मा कस्टम अधिकारी, ढाका में जन्मा सुनीलदास गुप्त और लाहोर में जन्मी भारतीय सिख वीवी अपने जन्म स्थान को कैसे भूल सकते हैं? विभाजन की त्रासदी ने उन्हें अपनी जन्मभूमि से अलग अवश्य कर दिया, परंतु उनके मस्तिष्क की स्मृति ओर भावनाएँ मिटाई नहीं जा सकतीं व्यक्ति कभी भी अपना वतन छोड़ना नहीं चाहता ओर न ही वह उसे भूल सकता है।
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