सदके फ़ियक एजाज़े सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज इन गज़लों के परदों में तो मीर की गज़ले वोले हैं

 सदके फ़ियक एजाज़े सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज इन गज़लों के परदों में तो मीर की गज़ले वोले हैं


प्रसंग प्रस्तुत शेर हमारी पठार आरोह, भाग-2 में संकलित गजल से उद्धृत है। इसके रचयिता फ़िराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में शायर अपनी शायरी पर ही मुग्ध है।


व्याख्या- फिराक कहते हैं कि उसकी गजलों पर लोग मुग्ध होकर कहते हैं कि फिराक, तुमने इतनी अच्छी शायरी कहाँ से सीख ली? इन गजलों के शब्दों से हमें मीर कवि की गजलों की सी समानता दिखाई पड़ती है। भाव यह है कि कवि की शायरी प्रसिद्ध कवि मीर के समान उत्कृष्ट है।