दीवाली की शाम घर पुते और सजे चीनी के खिलौने जगमगाते लावे वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक बच्चे के घरौंदें में जलाती है दिए।
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दीवाली की शाम घर पुते और सजे चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदें में जलाती है दिए।
प्रसंग प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह, भाग-2' में संकलित रुवाइयाँ' से उद्धृत है। इसके रचयिता उर्दू-फ़ारसी के प्रमुख शायर फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें दीवाली के त्योहार का वर्णन किया गया है।
व्याख्या शायर कहता है कि आज दीवाली की शाम है। इस अवसर पर घर रंग-रोगन से पुता हुआ तथा सजा हुआ है। घरों में मिठाई के नाम पर चीनी के बने हुए खिलौने आते हैं। रोशनी भी की जाती है। माँ के सुंदर मुँह पर हलकी चमक-सी आ जाती है। वह वच्चे के छोटे-से घर में दिया जलाती है।
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