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निराश हुआ जाए
पाठ का सार
इस पाठ में आजकल के समाचार पत्रों में छप रही चोरी, भ्रष्टाचार, हिंसा, बेईमानी आदि की खबरों को पढ़ने से समाज में निराशा का जो वातावरण बना है, उससे लेखक ने चिंता व्यक्त की है। यद्यपि समाज में अच्छे और बुरे दोनों काम करने वाले लोग हैं पर हमें अच्छे काम करनेवालों से प्रेरणा लेकर आशावादी होना चाहिए। जब लेखक आजकल के समाचार पत्रों को देखता है तो उसमें ठगी, डकैती, तस्करी, चोरी और भ्रष्टाचार के समाचारों की बहुलता होती है, जिसे देखकर उसका मन दुखी हो जाता है। इनमें एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप किया रहता है। इसे देखकर तो यही लगता है कि देश में कोई ईमानदार रह ही नहीं गया है। ऐसे में हर व्यक्ति गुणी कम, दोषी अधिक दिखता है। ऊँचे पद पर आसीन व्यक्ति ज्यादा ही दोपी दिखाई देता है। दोषों को इतना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है कि उसके सारे गुण छिप जाते हैं।