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13. लोकतंत्र में पत्रकारों का दायित्व
विचार-बिंदु लोकतंत्र में जन-जागरण आवश्यक पत्रकार सूचना का दूत पत्रकार लोकहित को समर्पित
• अस्वस्थ पत्रकारिता राजनीतिक विवेक जाग्रत करना।
सोकतंत्र में जन-जागरण आवश्यक- लोकतंत्र का अर्थ है- लोकराज लोकराज तभी संभव है, जबकि लोग जाग्रत हो। लोग तभी जाग्रत होते हैं, जब उनका समाज से सजीव संबंध हो। इस संबंध सरोकार को निर्मित करने में पत्रकारों की भूमिका बहुत बड़ी है। प्रैस यानि सूचना तंत्र को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है। जिस देश में पत्रकार जागरूक होते हैं, उस देश का लोकतंत्र बहुत सशक्त होता है।
, पत्रकार सूचना का दूत- पत्रकार का प्रमुखतम कार्य है-सूचनाओं का आदान-प्रदान । उसकी चार आँखें और चार काम होते हैं। वह अपने आसपास घटने वाली हर घटना के प्रति चौकन्ना होता है। उसकी जिज्ञासा आम नागरिक से अधिक ठोस, स्थान तथा भावुकता-रहित होती है। वह घटनाओं की भावुकता में नहीं बहता, बल्कि घटित घटना के एक-एक प्रामाणिक तथ्य की जानकारी एकत्र करता है।
पत्रकार लोकहित को समर्पित- पत्रकार मूलतः लोक-समर्पित होना चाहिए। वह न तो स्वार्थ-प्रेरित हो, न किसी वर्ग, जाति
या व्यक्ति का हित-साधन करे, बल्कि जनता जनार्दन की सेवा करे। यह बहुत कठिन कार्य है। पत्रकार के पथ में पग-पग पर बाधाएँ
आती हैं, लोभ आते हैं, जानलेवा धमकियाँ मिलती हैं, तो भी उसे सत्य पथ पर बढ़ना होता है। ऐसा सत्यपंथी पत्रकार ही लोकतंत्र
को सुदृढ़ कर सकता है।
पत्रकारिता का इतिहास ऐसे साहसी और सत्यपंथी पत्रकारों से भरा पड़ा है। गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारों ने ही देश
को नई रोशनी दी। उनके वचन देशवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने।
रचनात्मक पत्रकारिता-आजकल पत्रकारिता अश्लीलता और उच्छृंखलता के रंग में रँगती जा रही है। कोई भी समाचार पत्र या पत्रिका ऐसी नहीं है जिसमें अश्लील चित्र न हों। लगता है, उन्होंने अश्लीलता के सामने हार मान ली है। पत्रकार खोज-खोजकर समाज में हुई हिंसा, अपहरण, यौन-लीला, भ्रष्टाचार और राजनीतिक छल को छाप रहे हैं। इससे प्रतीत होता है मानो हम नारकीय जीवन जी रहे हैं।
अनेक खोजी पत्रकार लोकतंत्र को स्वस्थ स्वच्छ करने के नाम पर हर राजनेता के कच्चे चिट्ठे खोलने में संलग्न रहते हैं। वे हर नेता की ऐसी गंदली छवि प्रस्तुत करते हैं कि हमारा सभी पर से विश्वास उठ जाता है। ऐसे पत्रकार यह नहीं समझते कि इससे लोगों की राजनीति पर नेताओं पर तथा लोकतंत्र पर आस्था नष्ट हो जाती है। पत्रकारों का काम लोकतंत्र पर आस्था जमाना, न कि उसे डिगाना। ● राजनीतिक विवेक जाग्रत करना- पत्रकारों का सबसे प्रमुख दायित्व है-राजनीतिक विवेक जाग्रत करना। इसके लिए सार्थक
चर्चाएँ आयोजित करना, प्रमुख मुद्दों पर बहस कराना, जनमत बनाना तथा उस जनमत को संसद भवन के पटल तक पहुँचाना लोकतंत्र के संवर्द्धक उपाय हैं। आज इलैक्ट्रॉनिक मीडिया इस दिशा में अग्रसर हो रहा है। यह एक शुभ लक्षण है।
14. लोकतंत्र में चुनाव
विचार-बिंदु-• लोक पर आधारित शासन • चुनाव की निष्पक्षता • स्वतंत्र • चुनावों का घिनौना रूप
चुनाव के उपाय • फिल्मी सितारों का प्रवेश
निबंध लेखन
सोक पर आधारित शासन-लोकतंत्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसका सारा कार्यभार स्वयं 'लोक' के कंधों पर होता है। की सफलता-असफलता उन लोगों पर निर्भर करती है, जो कि सरकार चलाते हैं उन लोगों को घनना सबसे महत्त्वपूर्ण
चुनाव की निष्पक्षता-स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि चुनाव की प्रक्रिया निष्पक्ष, सरल और पारदर्शी हो। आम लोग भी चुनाव का अंग बन सकें। वे अपने मत का महत्व समझें तथा स्वतंत्र मत से मतदान कर सकें। देखने में आता है। 40 से 80 प्रतिशत तक मतदान होता है। चुनाव प्रणाली में ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए कि शत-प्रतिशत लोग मतदान
है। सोक पर आधारित शासन- लोकतंत्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसका सारा कार्यभार स्वयं 'लोक' के कंधों पर होता है। की सफलता-असफलता उन लोगों पर निर्भर करती है, जो कि सरकार चलाते हैं। उन लोगों को चुनना सबसे महत्वपूर्ण चुनाव की निष्पक्षता-स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि चुनाव की प्रक्रिया निष्पक्ष, सरल और पारदर्शी हो। आम
कि भारत में 40 से 80 प्रतिशत तक मतदान होता है। चुनाव प्रणाली में ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए कि शत-प्रतिशत लोग मतदान है। इसके लिए दंड और पुरस्कार की योजना की जानी चाहिए। स्वतंत्र चुनाव के उपाय-स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का अर्थ यही है कि चुनाव लड़ना सस्ता, सुरक्षित तथा सर्वसुलम हो । इसके लिए जटिल कानूनी दाँवपेंच न हों। कोई गरीब समाजसेवी धन के अभाव में भी चुनाव लड़ सके। दूसरी ओर, यह भी किया जाना चाहिए कि धन-संपन्न लोग लोभ-लालच और प्रचार-प्रसार के बल पर लोगों को गुमराह न कर सकें। यद्यपि विषय में कानूनों की कमी नहीं है, परंतु व्यवहार में इनकी पालना नहीं की जाती बड़े-बड़े धनी लोग अपने धन-बल पर तंत्र प्रशासन, पुलिस और प्रभावी लोगों को खरीद लेते है । कहीं-कहीं गुंडागर्दी का साम्राज्य होता है। वहाँ किसी कुख्यात गुंडे के सामने कोई चुनाव में खड़ा नहीं होता। यदि कोई साहस करे तो उसकी हत्या करवा दी जाती है। ऐसी स्थिति पर चुनाव आयोग ● की कड़ी निगाह होनी चाहिए। सौभाग्य से चुनाव आयोग इस दिशा में जागरूक है। परंतु अभी और काम किया जाना बाकी है। " फिल्मी सितारों का प्रवेश - आजकल देखने में यह आता है कि विभिन्न दल अपने चुनाव प्रचार में फिल्मी हस्तियों और
लोग भी चुनाव का अंग बन सकें। ये अपने मत का महत्व समझें तथा स्वतंत्र मत से मतदान कर सकें। देखने में आता है
ब्रेकेट-सितारों को बुला लेते हैं। इस बहाने लोगों की भीड़ जमा हो जाती है। वास्तव में इन मेहमान कलाकारों का चुनावों से कोई
ना-देना नहीं होता। ये मदारी की डुगडुगी का काम करते हैं। ऐसे कामों से लोकतंत्र में भटकाव आता है। लोग लुभावनी और कच्ची $ बातों के झाँसे में आकर अपना कीमती मत बेकार कर बैठते हैं। चुनावों का घिनीना रूप-भारत के चुनावी परिदृश्य का एक घिनौना रूप भी है। चुनावी सभाओं में नेताओं के चमचे और बड़बोले वक्ता अपने विरोधियों के बारे में अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं। वे खुलकर एक-दूसरे पर लाँछन लगाते हैं तथा उनका इरित्र-नन करते हैं। यह चिंताजनक बात है।
वास्तव में स्वस्थ चुनाव का स्वस्थ रूप है- शांतिपूर्वक प्रचार करना मतदाताओं के सामने अपनी कार्य योजना रखना, न कि विरोधियों को उखाड़ना। इसके लिए इलैक्ट्रॉनिक मीडिया सबसे सशक्त माध्यम है। इसके सहारे पूरे परिवार के सदस्य चुनावी चर्चा में सम्मिलित हो सकते हैं
15. हिंदी दिवस
विचार-बिंदु • हिंदी दिवस एक परिचय भारत की अनेक भाषाएँ • स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी आज अंग्रेजी का बोलवाला हिंदी की क्षमता।
हिंदी दिवस- एक परिचय-भारत में हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस दिन का ऐतिहासिक महत्त्व है। 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया था। उसी दिन से हिंदी भाषा के दिन फिर गए। उसका भविष्य उज्ज्वल हो गया। जो हिंदी अब तक अघोषित रूप से भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत थी, अघोषित रूप से भारत की राजकाज की भाषा बन गई। आज भी उस ऐतिहासिक फैसले को याद कराने के लिए इस दिन को सरकारी कार्यालयों में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत की अनेक भाषाएँ-भारत विभिन्न भाषाओं वाला देश है। यहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। संविधान में ही 22 भाषाओं को राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता दी गई है। कश्मीरी, डोगरी, पंजाबी, नेपाली, संस्कृत, सिंधी, उर्दू, उड़िया, बंगाली, मराठी, गुजराती, कोंकणी, मैथिली, वोडो, तमिल, कन्नड़, मलयालम, तेलुगू आदि भाषाएँ भारत की राष्ट्रीय भाषाएँ ही हैं। ये किसी-न-किसी राज्य की राजभाषा भी हो सकती है। परंतु पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा एकमात्र हिंदी ही है।
स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी भाषा का ही बोलबाला था महात्मा गाँधी, सरदार पटेल आदि क्रांतिकारियों ने हिंदी के माध्यम से ही स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। यहाँ तक कि गाँधी, पटेल, सुभाष आदि नेता हिंदीभाषी नहीं। थे, फिर उन्होंने हिंदी को संपर्क भाषा, माध्यम भाषा और राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित करने का प्रयास किया। इतना ही नहीं, भारत में व्यापार करने वाले विदेशी संस्थान हों या स्वयं अंग्रेज शासक, सभी ने हिंदी भाषा के महत्त्व को समझा। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती कि हिंदी ऊपर से थोपी नहीं गई है बल्कि यह यहाँ की वास्तविक सच्चाई है। आजादी से पहले इंग्लैंड से आने वाले शासक हिंदी भाषा सीखकर पूरे देश पर शासन किया करते थे।
अंग्रेज़ी का बोलबाला आज सब जगह अंग्रेजी का बोलबाला नज़र आता है। शिक्षा और कामकाज में अंग्रेजी की तूती बोल रही है। परंतु यह भी सच है कि दैनिक व्यवहार और मनोरंजन में हिंदी का ही प्रमुख स्थान है। समाचार-पत्र, दूरदर्शन के चैनल लोकप्रिय धारावाहिक, फ़िल्में, विज्ञापन आदि सभी में हिंदी का ही बोलबाला है। हाँ, अपने आपको बड़ा और शिक्षित सिद्ध करने के लिए लोग अवश्य अंग्रेज़ी का प्रयोग करते हैं। यह एक प्रकार का ढोंग है। धीरे-धीरे हिंदी की शक्ति बढ़ने पर यह ढोंग भी समाप्त हो जाएगा।
हिंदी की क्षमता–हिंदी भाषा न केवल देश की बड़ी भाषा है बल्कि यह दिल से भी बहुत उदार है। इसमें पंजावी, मराठी, गुजराती, बंगला आदि भारतीय भाषाओं के साथ चलने की अद्भुत क्षमता है। आजादी के बाद इसने अंग्रेजी के भी साथ तालमेल दिखाया है। आज हिंदी भाषा में अंग्रेज़ी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के हजारों शब्द इस तरह समा गए हैं कि वे हिंदी के ही प्रतीत होते हैं। अपनी इसी लोचदार प्रवृत्ति के कारण इसका विकास अनवरत होता जा रहा है।
स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी भाषा का ही बोलबाला था महात्मा गाँधी, सरदार पटेल आदि क्रांतिकारियों ने हिंदी के माध्यम से ही स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। यहाँ तक कि गाँधी, पटेल, सुभाप आदि नेता हिंदीभाषी नहीं थे, फिर भी उन्होंने हिंदी को संपर्क भाषा, माध्यम भाषा और राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित करने का प्रयास किया। इतना ही नहीं, भारत व्यापार करने वाले विदेशी संस्थान हों या स्वयं अंग्रेज शासक, सभी ने हिंदी भाषा के महत्व को समझा। इससे यह बात 1ो नहीं गई यह यहाँ की वास्तविक सच्चाई है। आजादी से पहले इंग्लैंड से आने