हिंदी डायरी के पन्ने -


पाठ का सारांश

जर्मनी के शासक ने गैस चैंबर व फायरिंग स्क्वायड के माध्यम से लाखो यहूदियों को मौत के घाट उतारा। ऐसे समय में दो यहूदी परिवार दो वर्ष तक एक गुप्त आवास में छिपे रहे। इनमें एक फ्रैंक परिवार था, दूसरा वान दंपति । ऐन ने गुप्त आवास में विताए दो वर्षों का जीवन अपनी डायरी में लिखा यह डायरी दो जून, 1942 से पहली अगस्त, 1944 तक लिखी गई। चार अगस्त, 1944 को किसी की सूचना पर ये लोग पकड़े गए। 1945 में ऐन की अकाल मृत्यु हो गई। ऐन ने अपनी किट्टी नामक गुड़िया को संबोधित करके डायरी लिखी जो उसे अच्छे दिनो में जन्मदिन पर उपहार में मिली थी।

बुधवार, 8 जुलाई, 1942

इस दिन ऐन फ्रैंक गुप्त आवास पर जाने के विषय में लिखती है। उसकी बड़ी बहन को ए०एस०एस० से बुलावा आने पर घर के लोग गुप्त आवास पर जाने की तैयारी करते हैं। यह उनके जीवन का सबसे कठिन समय था ऐन ने अपने बैग में अजीबोगरीब चीजे भर डाली। उसने सबसे पहले अपनी डायरी रखी। क्योकि लेखिका के लिए स्मृतियाँ पोशाकों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण थी।

ऐन व वानदान के परिवार वाले गुप्त आवास की व्यवस्था करते हैं।

गुरूवार, 9 जुलाई, 19 1942

इस दिन वे अपने छुपने के स्थान पर पहुंचते हैं। यह गुप्त आवास उसके पिता का आफिस है। वह घर के कमरों के बारे में बताती है। यह भवन गोदाम व भंडारघर के रूप में प्रयोग होता था। यहाँ इलायची, लीग और लाल मिर्च वगैरह पीसे जाते थे। गोदाम के दरवाजे से सटा हुआ बाहर का दरवाजा है जो आफिस का प्रवेश द्वार है। सीढियाँ चढ़कर उपर पहुंचने पर एक और द्वार है जिस पर शीशे की खिड़की है जिस पर काला शीशा लगा हुआ है। इस पर कार्यालय लिखा है। इसी कमरे में दिन के समय पोष, मिएप व मिस्टर क्लीमेन काम करते हैं। एक छोटे से गलियारे में दमधोटू अँधियारे से युक्त एक छोटा सा कमरा बैंक ऑफिस है। यही मिस्टर डालर व वानदान वैठते थे। मिस्टर क्लीमेन के आफिस से निकलकर तंग गलियारे में प्राइवेट आफिस है। नीचे सीढ़ियों वाले गलियारे से दूसरी मंजिल को रास्ता है जो गली की तरफ खुलता है। यही पर एन फ्रैंक व उसका परिवार रहता है।

शुक्रवार, 15 जुलाई, 1942


इस दिन ऐन गुप्त आवास के पहले दिन का वर्णन करती है। यहाँ पहुँचने पर उसकी माँ व वहन बुरी तरह थक जाती हैं। ऐन और उसके पिता अपने नए आवास को व्यवस्थित करने का प्रयास करते हैं। वे भी बुरी तरह थक जाते है। बुधवार तक तो उन्हें यह सोचने की फुर्सत नहीं थी कि उनकी जिंदगी में कितना बड़ा परिवर्तन आ चुका था।


शनिवार, 28 नवंबर, 1942


वह बताती है कि इन दिनों वे बिजली और राशन ज्यादा खर्च कर चुके हैं। उन्हें और किफ़ायत करनी होगी ताकि विजली का कट न लगे। साढ़े चार बजते ही अँधेरा हो जाता है। उस समय पढ़ा नहीं जा सकता। ऐसे समय में वे ऊल-जुलूल हरकतें करके गुजारते हैं।

दिन में परदे नहीं हटा सकते थे। अंधेरा होने के बाद परदे हटाकर पड़ोस में ताँक-झाँक कर लेते थे। लेखिका वसेल के बारे में बताती है कि वे बच्चों से बेहद प्यार करते हैं।

उनके भाषण सुनकर वह बोर हो जाती है। वह उनकी अनुशासन संबंधी बातें नहीं सुनती। वे चुगलखोर हैं। वे सारी बात की रिपोर्ट मम्मी को दे देते हैं और मम्मी से मुझे उपदेश सुनने पढ़ते हैं। कभी-कभी मिसेज वान पाँच मिनट बाद उसे बुलवा लेती थी। हर समय डाट-फटकार, दुत्कारा जाना आदि झेलना आसान नहीं होता। रात को बिस्तर पर लेटकर लेखिका अपनी कमियों व कार्यों के बारे में सोचती है तो उसे हँसी व रोना दोनों आते हैं। वह स्वयं को बदलने की कोशिश करती है।

शुक्रवार, 19 मार्च, 1943

ऐन बताती है कि तुर्की के इंग्लैंड के पक्ष में न आने से हज़ार गिल्डर का नोट अवैध घोषित किया गया। इससे कालाबाजारी को झटका लगेगा, साथ भूमिगत लोगों को नुकसान होगा। गिएज एंड कंपनी के पास हजार गिल्डर के कुछ नोट हैं जिन्हें आगामी वर्षों की कर अदायगी में निपटा दिया है। मिस्टर डसेल को कहीं से पैरों से चलने वाली दातों की डिल मशीन मिल गई है। घर के कायदे कानून के पालन में मिस्टर डसेल आलसी हैं। मार्गोट उनके पत्रों को ठीक करती है। पापा ने उन्हें यह काम बंद करने का कहा।

लेखिका जर्मन घायल सैनिक व हिटलर के बीच बातचीत को रेडियो पर सुनती है। घायल सैनिक अपने जख्मों को दिखाते हुए गर्व महसूस कर रहे थे। उसी समय उसका पैर डसेल के सावुन पर पड़ गया और सावुन खत्म हो गया। उसने पापा से इसकी भरपाई करने को कहा क्योंकि युद्ध के समय महीने में घटिया सावुन की एक बट्टी मिलती थी।


शुक्रवार, 23 जनवरी, 1944


पिछले कुछ सप्ताहों से उसे परिवार के वंश वृक्षों और राजसी परिवारों की वंशावली तालिकाओं से खासी रुचि हो गई है। वह मेहनत से स्कूल का काम करती है। वह रेडियो पर वी०वी०सी० की होम सर्विस को समझती है। वह रविवार को अपने प्रिय फ़िल्मी कलाकारों की तस्वीरें देखने में गुजारती है। मिस्टर कुगलर उसके लिए सिनेमा एड थियेटर' पत्रिका लाते हैं। परिवार के लोग इसे पैसे की वरवादी मानते हैं। वेप शनिवार को अपने ब्वाय फ्रेंड के साथ फ़िल्म देखने जाने की बात बताती है तो वह उसे पहले ही फ़िल्म के मुख्य नायको व नायिकाओं के नाम तथा समीक्षाएं बता देती है। मम्मी कहती है कि उसे सब याद है, इसलिए उसे फिल्म देखने की जरूरत नहीं है। जब वह नयी केश-सज्जा बनाकर आती है तो सभी कहते हैं कि वह फ़िल्म स्टार की नकल कर रही है। वह कहती है कि यह उसका स्टाइल है तो सभी उसका मजाक उड़ाते हैं।

बुधवार, 28 जनवरी, 1944


ऐन कहती है कि तुम्हें हर दिन मेरी बासी खबरें सुननी पड़ती है। तुम्हे मेरी बातें नाली के पानी के समान नीरस लगती होंगी। परंतु उसकी दशा भी ठीक नहीं है। प्रतिदिन उसे मम्मी या मिसेज वानदान के बचपन की कहानियाँ सुनने को मिलती हैं। उनके बाद डसेल अपने किस्से सुनाते हैं। किसी भी लतीफे को सुनने से पहले ही हमे उसकी पाँच लाइन पता होती है। एनेक्सी की हालत यह है कि यहाँ नया या ताजा सुनने सुनाने को कुछ भी नहीं बचा है। जॉन और मिस्टर क्लीमेन को अज्ञातवास में छुपे या भूमिगत हो गएलोगों के बारे में बात करना अच्छा लगता है। हमें उनकी तकलीफ़ों से हमदर्दी है जो गिरफ्तार हो गए हैं तथा उनकी खुशी में खुशी होती है जो केंद से आजाद कर दिए गए हैं। कुछ लोग इन कष्ट-पीड़ितों की सहायता करते हैं। वे नकली पहचान पत्र बनाते हैं, छिपे हैं तथा युवाओं के लिए काम खोजते हैं। ये लोग जान पर खेलकर दूसरों की मदद करते हैं।

बुधवार, 29 मार्च, 1944


ऐन कैविनेट मंत्री मिस्टर बोतके स्टीन के भाषण के बारे में लिखती है कि उन्होंने कहा था कि युद्ध के बाद युद्ध का वर्णन करने वाली डायरियाँ व पन्नों का संग्रह किया जाएगा। वह अपनी डायरी छपवाने की बात कहती है। यहूदियों के अज्ञातवास के बारे में लोग जानने के लिए उत्सुक होंगे। बम गिरते समय औरते कैसे डर जाती हैं, पिछले रविवार को ब्रिटिश वायुसेना के 350 विमानों ने इज्मुईडेन पर 550 टन गोला-बारूद वरसाया तो उनका घर घास की पत्तियों की तरह कॉप रहा था। ये खवर तुम्हें अच्छी नहीं लगेगी। लोगों को सामान खरीदने के लिए लाइन में लगना पड़ता है। चोरी चकारी बहुत बढ़ गई है। लोग पाँच मिनट के लिए अपना घर नहीं छोड़ पाते। डचों की नैतिकता अच्छी नहीं है। सब भूखे हैं। एक हफ्ते का राशन दो दिन भी नहीं चल पाता। बच्चे भूख व बीमारी से बेहाल हैं। फटे-पुराने कपड़ों व जूतों से काम चलाना पड़ता है। सरकारी लोगों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। खाद्य कार्यालय, पुलिस सभी या तो अपने साथी नागरिकों की मदद कर रहे हैं या उन पर कोई आरोप लगाकर जेल भेज देते हैं।

मंगलवार, 11 अप्रैल, 1944


ऐन बताती है कि शनिवार के दिन दो बजे के आस-पास तेज़ गोलीबारी शुरू हुई। रविवार दोपहर के समय पीटर उसके पास आया। वह उसके साथ बातें करती है। दोनों मिलकर मिस्टर डसेल को परेशान करने की योजना भी बनाते हैं। उसी रात को उनके घर में सेंधमारी की घटना भी हुई थी गुप्त रहने की मजबूरी में घटी इस घटना ने सभी आठ लोगों को

हिलाकर रख दिया।

मंगलवार, 13 जून, 1944

ऐन बताती है कि आज वह पंद्रह वर्ष की हो गई है। उसे पुस्तक, वेल्ट, रूमाल, दही, जैम, विस्कुट, ब्रेसलेट, मीठे मटर, मिठाई, लिखने की कापियाँ आदि अनेक उपहार मिले हैं। मौसम खराब है तथा हमले जारी है। वह बताती है कि चर्चिल उन फ्रांसीसी गावो मे गए थे जो ब्रिटिश कब्जे से मुक्त हुए हैं। चर्चित को डर नहीं लगता। वह उन्हें जन्मजात वहादुर कहती है। ब्रिटिश सैनिक अपने मकसद में लगे हुए थे। हॉलैंडवासी सिर्फ अपनी आजादी के लिए ब्रिटिशों का सहयोग चाहते थे, कब्जा नहीं।

वह कहती है कि इन मूर्खों को यह पता नहीं है कि यदि ब्रिटेन ने जर्मनी के साथ संधि पर हस्ताक्षर कर दिए होते तो

हॉलैंड जर्मनी बन जाता।

जर्मन व ब्रिटेन दोनों में अंतर है। ब्रिटेन रक्षक है तो जर्मनी आक्राता। ऐन अपनी कमजोरी जानती है तथा खुद को बदलना चाहती है। लोग उसे अक्खड़ समझते हैं। मिसेज वान दान और डसेल जैसे जड़ बुद्धि उस पर हमेशा आरोप लगाते रहते हैं। मिसेज वान दान उसे अक्खड़ समझती है क्योंकि वह उससे भी अधिक अक्खड़ है। वह स्वयं को सबसे अधिक धिक्कारती है। वह माँ के उपदेशों से मुक्ति पाने के बारे में सोचती है। उसकी भावनाओं को कोई नहीं समझता और वह अपनी भावनाओं को गंभीरता से समझने वाले व्यक्ति की तलाश में है। वह पीटर के बारे में बताती

है। पीटर उसे दोस्त की तरह प्यार करता है।

ऐन भी उसकी दीवानी है। वह उसके लिए तड़पती है। पीटर अच्छा व भला लड़का है, परंतु उसकी धार्मिक तथा खाने संबंधी बातों से वह नफरत करती है। उन्होंने कभी न झगड़ने का वायदा किया है। वह शांतिप्रिय, सहनशील व बेहद सहज आत्मीय व्यक्ति है। वह ऐन की गलत बातों को भी सहन कर लेता है।

वह कोशिश करता है कि अपने कामों में सलीका लाए तथा अपने ऊपर आरोप न लगने दे। वह अधिक घुन्ना है। वे दोनों भविष्य, वर्तमान व अतीत की बातें करते हैं। ऐन काफी दिनों से बाहर नहीं निकली। अब वह प्रकृति को देखना चाहती है। एक दिन गर्मी की रात में साढ़े ग्यारह बजे उसने चाँद देखने की इच्छा की, परंतु चोंदनी अधिक होने के कारण वह खिड़की नहीं खोल सकी। आखिरकार बरसात के समय खिड़की खोलकर तेज हवाओ व बादलों की लुका-छिपी की देखा। यह अवसर डेढ़ साल बाद


मिला था।


प्रकृति के सौंदर्य के आनंद के लिए अस्पताल व जेलों में बंद लोग तरसते हैं। आसमान, बादलों, चाँद और तारों की तरफ देखकर उसे शांति व आशा मिलती है। प्रकृति शांति पाने की रामबाण दवा है और यह उसे विनम्रता प्रदान करती है। ऐन पुरुषों और औरतों के अधिकारों के बारे में बताती है। उसे लगता है कि पुरुषों में अपनी शारीरिक क्षमता के अधिक होने के कारण औरतों पर शुरू से ही शासन किया औरतें इस स्थिति को बेवकूफी के कारण सहन करती आ रही है। अब समय बदल गया है। शिक्षा, काम और प्रगति ने औरतों की आंखें खोल दी हैं। कई देशों ने उनको बराबरी का हक दिया है। आधुनिक औरते अब वरावरी चाहती हैं। औरतों को भी पुरुषों की तरह सम्मान मिलना चाहिए।


उन्हें सैनिकों जैसा दर्जा व सम्मान मिलना चाहिए। युद्ध में वीर को तकलीफ,


वितान


पीड़ा, बीमारी व यातना से गुजरना पड़ता है, उससे कहीं अधिक तकलीफ बच्चा पैदा करते वक्त औरत सहती है। बच्चा पैदा करने के बाद औरत का आकर्षण समाप्त हो जाता है। मानव जाति की निरंतरता औरत से है। वह सैनिकों से ज्यादा मेहनत करती है। इसका मतलब यह नहीं है कि औरते बच्चे उत्पन्न करना बंद कर दें।

प्रकृति यह कार्य चाहती और उन्हें यह कार्य करते रहना चाहिए। वह उन व्यक्तियों की भर्त्सना करती है जो समाज में औरतों के

योगदान को मानने के लिए तैयार नहीं है।

वह पौल दे कूइफ़ से पूर्णतः सहमत है कि पुरुषों को यह बात सीखनी ही चाहिए कि संसार के जिन हिस्सों को हम सभ्य कहते

है वहाँ जन्म अनिवार्य और टाला न जा सकने वाला काम नहीं रह गया है। आदमियों को औरतों द्वारा झेली जाने वाली तकलीफो से कभी भी नहीं गुजरना पड़ेगा ऐन का विश्वास है कि अगली सदी आने तक यह मान्यता बदल चुकी होगी कि बच्चे पैदा करना ही औरतों का काम है। औरते ज्यादा सम्मान और सराहना की हकदार बनेगी।