कक्षा 12- हिंदी- नमक

 कक्षा 12- हिंदी- नमक


पाठ का सार:

नमक कहानी रजिया सज्जाद जहीर द्वारा रचित एक उत्कृष्ट कहानी है। यह भारत-पाक विभाजन के बाद सरहद के दोनों तरफ के विस्थापित लोगों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक कहानी है। दिलों को टटोलने की इस कोशिश में उन्होंने अपने पराए देश-परदेश की।

कई प्रचलित धारणाओं पर सवाल खड़े किए हैं। विस्थापित होकर आई सिख बीवी आज भी लाहोर को ही अपना वतन मानती हैं ओर सोगात के तोर पर वहाँ का लाहोटी नमक ले आने की फरमाइश करती हैं। सफिया का बड़ा भाई पाकिस्तान में एक बहुत बड़ा पुलिस अफसर है। सफिया के नमक को ले जाने पर वह उसे गेट-कानूनी बताता है। लेकिन सफ़िया वहाँ से नमक ले जाने की जिद्द करती है। वह नमक को एक फलों की टोकरी में डालकर कस्टम अधिकारियों से बचना चाहती है।

सफ़िया को विस्थापित सिख वीवी याद आती हैं, जो अभी भी लाहोर को ही अपना वतन मानती है। अब भी उनके हृदय में अपने लाहोर का सौंदर्य समाया हुआ है। सफ़िया भारत आने के लिए फर्स्ट क्लास के वेटिंग रूम में बैठी थी। वह मन ही मन में सोच रही थी कि उसके किन्नुओं की टोकरी में नमक है, यह बात केवल वही जानती है, लेकिन वह मन-ही-मन कस्टम वालों से डटी हुई थी।

कस्टम अधिकारी सफ़िया को नमक ले जाने की इजाजत देता है तथा देहली को अपना वतन बताता है, तथा सफ़िया को कहता है कि जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेटी तरफ से कहिएगा कि लाहोर अभी तक उनका वतन हे ओर देहली मेटा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।" रेल में सवार होकर सफ़िया पाकिस्तान से अमृतसर पहुँची। वहाँ भी उसका सामान कस्टम वालों ने चेक किया। भारतीय कस्टम अधिकारी सुनील दासगुप्त ने सफ़िया को कहा कि "मेरा वतन ढाका है।" और उसने यह भी बताया कि जब भारत-पाक विभाजन हुआ था, तभी वे भारत में आए थे। इन्होंने भी सफ़िया को नमक अपने हाथ से सौंपा। इसे देखकर सफिया सोचती रही कि किसका वतन कहाँ है? इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने बताया है कि राष्ट्रराज्यों की नई सीमा रेखाएँ खींची जा चुकी हैं ओर मजहबी आधार पर लोग इन देखाओं के इधर-उधर अपनी जगहें मुकर्रर कर चुके हैं, इसके बावजूद ज़मीन पर खींची गई रेखाएँ उनके अंतर्मन तक नहीं पहुंच पाई हैं।