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22. मेरे जीवन का लक्ष्य या उद्देश्य (A.J. CBSE 2001 2004 F
विचार-बिंदु लक्ष्य का निश्चय लक्ष्यपूर्ण जीवन के लाभ मेरा संकल्प लक्ष्य पूर्ति का प्रयास। लक्ष्य का निश्चय में दसवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे मन में एक ही सपना है कि मैं इंजीनियर बनूँगा ।
सक्ष्यपूर्ण जीवन के लाभ-जब से मेरे भीतर यह सपना जागा है, तब से मेरे जीवन में अनेक परिवर्तन आ गए हैं। अब में अपनी पढ़ाई की ओर अधिक ध्यान देने लगा हूँ। पहले क्रिकेट के खिलाड़ियों और फिल्मी तारिकाओं में गहरी रुचि लेता था, अब ज्यामिति की रचनाओं और रासायनिक मिश्रणों में रुचि लेने लगा हूँ। अब पढ़ाई में रस आने लगा है। निरुद्देश्य पढ़ाई बोझ थी। लक्ष्यबद्ध पढ़ाई में आनंद है। सच ही कहा था कार्लाइल ने- "अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाओ और इसके बाद अपना सारा शारीरिक और मानसिक बल, जो ईश्वर ने तुम्हें दिया है, उसमें लगा दो।"
मेरा संकल्प- मैंने निश्चय किया है कि मैं इंजीनियर बनकर इस संसार को नए-नए साधनों से संपन्न करूँगा। मेरे देश में जिस वस्तु की आवश्यकता होगी, उसके अनुसार मशीनों का निर्माण करूँगा। देश में जल-बिजली, सड़क या संचार जिस भी साधन की आवश्यकता होगी, उसे पूरा करने में अपना जीवन लगा दूँगा।
में गरीब परिवार का बालक हूँ। मेरे पिता किराए के मकान में रहे हैं। धन की तंगी के कारण हम अपना मकान नहीं पाए यही दशा मेरे जैसे करोड़ों बालकों की है। मैं बड़ा होकर भवन निर्माण की ऐसी सस्ती, सुलभ योजनाओं में रुचि लूँगा जिससे मकानहीनों को मकान मिल सकें।
बना
मैंने सुना है कि कई इंजीनियर धन के लालच में सरकारी भवनों, सड़कों, बाँधों में घटिया सामग्री लगा देते हैं। यह सुनकर मेरा हृदय रो पड़ता है। में कदापि यह पाप कर्म नहीं करूँगा, न अपने होते यह काम किसी को करने दूँगा।
लक्ष्य पूर्ति का प्रयास मैंने अपने लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास करने आरंभ कर दिए हैं। गणित और विज्ञान में गहरा अध्ययन कर रहा हूँ। अब में तब तक आराम नहीं करूंगा, जब तक कि लक्ष्य को पा न लूँ। कविता की ये पंक्तियाँ मुझे सदा चलते रहने की प्रेरणा देती हैं
लक्ष्य तक पहुंचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा ?
23. शिक्षा का गिरता स्तर
विचार-बिंदु शिक्षा का अर्थ वर्तमान शिक्षा बौद्धिक श्रम को महत्त्व दोषी कौन। शिक्षा का अर्थ- गाँधी जी कहते थे- "शिक्षा से मेरा अभिप्राय है बच्चे की संपूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक
शक्तियों का सर्वांगीण विकास साक्षरता न तो शिक्षा का अंत है और न आरंभ।" अरविंद लिखते हैं- "शिक्षा का कार्य आत्मा को विकसित करने में सहायता देना है।"
वर्तमान शिक्षा दुर्भाग्य से आज की शिक्षा का स्तर बहुत गिर चुका है। आज के विद्यालय छात्रों को आजीविका और पाठ्यक्रम की शिक्षा देते हैं। पाठ्यक्रम में छात्र के मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। इसलिए वे न तो समाज सेवा की ओर ध्यान देते हैं और न ही अध्यात्म को किसी काम की चीज़ मानते हैं। वे पैसा कमाने की मशीन तो बन जाते हैं किंतु अच्छे आदमी भी हों, इसकी कोई गारंटी नहीं।
बंध-लेखन
बौद्धिक श्रम को महत्त्व- वर्तमान शिक्षा केवल बौद्धिक श्रम को महत्त्व देती है। प्रतियोगिताओं में परीक्षा इस बात की होती के कौन सूचनाओं को एक साथ ढो सकता है। जिसने तकनीक का अच्छा अभ्यास किया होता है, वही प्रतियोगिता जीत का बुरा परिणाम यह हो रहा है कि समाज सेवा या प्रशासन में भी ऐसे लोग जा रहे हैं जिन्होंने न कभी ज-सेवा की और न जिन्हें सेवा के संस्कार मिले। बस ये नौकरी में जाते ही पैसा कमाने की होड़ करने लगते हैं। सेवा, विकास, है। इस प्रवृत्ति इनसान, आत्मा का विकास आदि शब्द उन्हें व्यर्थ प्रतीत होने लगते हैं।
दोषी कौन-आज पैसा ही भगवान हो गया है। पैसे वाले को ही शरीफ, धनी को ही "भले घर का" माना जाता है। यही रण है कि सब लोगों का लक्ष्य पैसा कमाना हो गया है। यदि त्यागी तपस्वी को सम्मान मिलता होता, तो लोग इस दिशा में भी भले और भोले इनसान को आज मूर्ख माना जाता है।
है कि सब लोगों का लक्ष्य पैसा कमाना हो गया है। यदि त्यागी तपस्वी को सम्मान मिलता होता, तो लोग इस दिशा में भी
•बौद्धिक श्रम को महत्त्व- वर्तमान शिक्षा केवल बौद्धिक श्रम को महत्त्व देती है। प्रतियोगिताओं में परीक्षा इस बात की होती के कौन कितनी सूचनाओं को एक साथ ढो सकता है। जिसने तकनीक का अच्छा अभ्यास किया होता है, वही प्रतियोगिता जीत है। इस प्रवृत्ति का बुरा परिणाम यह हो रहा है कि समाज सेवा या प्रशासन में भी ऐसे लोग जा रहे हैं जिन्होंने न कभी राज-सेवा की और न जिन्हें सेवा के संस्कार मिले। बस ये नौकरी में जाते ही पैसा कमाने की होड़ करने लगते हैं। सेवा, विकास, इनसान, आत्मा का विकास आदि शब्द उन्हें व्यर्थ प्रतीत होने लगते हैं। दोषी कौन-आज पैसा ही भगवान हो गया है। पैसे वाले को ही शरीफ, धनी को ही "भले घर का" माना जाता है। यही
। भले और भोले इनसान को आज मूर्ख माना जाता है। परंपरागत व्यवसायों के नष्ट होने से भी शिक्षा का स्तर गिरा है। जब से औद्योगिकीकरण शुरू हुआ है, नई तरह के प्रशिक्षित मंचारियों का निर्माण करने की जिम्मेदारी शिक्षा पर आ पड़ी है। मैकाले को कंपनी का शासन चलाने के लिए भारतीय क्लकों जरूरत थी। उसने ऐसी ही शिक्षा पद्धति शुरू की। परंतु आज यह समझना चाहिए कि मनुष्य शरीर ही नहीं, आत्मा भी है। अतः सकी आत्मिक शक्तियों को भी विकसित किया जाना चाहिए। तभी शिक्षा अपने लक्ष्य को पूरा कर सकेगी।
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